महोब्बत और नफरत सब मिल चुके हैं मुझे;
मैं अब तकरीबन मुकम्मल हो चोका हूँ!
ग़मों को आबरू और
अपनी ख़ुशी को गम समझते हैं,
जिन्हें कोई नहीं समझा सका
उन्हें बस हम समझते हैं
मेरे लफ्जों की ज़ुबां से
कभी उफ़ तक नहीं हुआ !
लिख कर बर्बादिया खुदकी
मैं हो गया धुआं धुआं
सुबह की ख्वाहिशे शाम तक टाली है ,
कुछ इसी तरह मैने ज़िन्दगी सँभाली है!
इस तरह आसमान में चमक रहें हैं
चाँद और तारे
मनो यूँ कह रहे हों
तुम हो मेरे और हम हैं तुम्हारे
दिल की वो शाम
भागती हुई परछाइयां
एक कप चाय
और उनकी
अंगड़ाइयां
उफ्फ्फ
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